वो जलवा कबसे
वो जलवा कब से दिखा रहे हैँ
जाने क्यों मुझ से छिपा रहे हैँ
तलब है मुझको मिले जो उल्फ़त
बन गए हैं अब वो मेरी मोहबत
असर भी कुछ लाएगी ये सोहबत
वो भी मोहबत निभा रहे हैं
वो जलवा ..........
छिपोगे कब तक परदों में यूँ साहिब
तेरे हैँ आशिक़ इक दिन ढून्ढ लेंगे
हो जायेगा इक दिन दीदार उनका
चाहे लाखों वो पर्दे गिरा रहे हैं
वो जलवा............
तेरी मोहबत से है मेरी मोहबत
जो तुमने की तो मुझे करनी आई
यूँ ही बनी रहे ये कशिश ऐसे
जो गीत हम गुनगुना रहे हैँ
वो जलवा...........
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