पीर विरह की
कैसो सखी पीर विरह की
कैसो सखी तोहे बताऊँ
पिया ना आवे पीर ना जावे
कासों हिय की बात सुनाऊँ
कोण घड़ी तोसे नेह लगायो
पल भर भी चैन नहीं पायो
बाँवरी विरहणी बोले सखियाँ
कैसो मेरो नाम धरायो
कैसो सखी........
शूल विरह का हिय में सखी री
जब सों पिया तेरी सूरत लखी री
नैनन में ही बस जाओ पिया जी
दूर देस क्यों वास बनायो
कैसो सखी.........
जीवन बीता बीती रे उमरिया
प्रेम बिना मेरो रीती रे गगरिया
आओ पिया जी सुधि लो मोरी
झर झर अखियाँ सावन बरसायो
कैसो सखी........
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