बेकरारी दर्द की

हाय तेरा दर्द मुझे बेकरार कर जाता है
मुझे फिर इश्क़ का शिकार कर जाता है
सोचती हूँ की अब नहीं सोचूं तुझको
फिर कोई शख्स जिक्र ए यार कर जाता है

सोचते हैं तनहा ही रहते क्यों इश्क़ किया
नज़र चार ना की होती तो अच्छा होता
ना होता दर्द दिल में तेरी जुदाई का
ना ही होता डर कोई तेरी रुस्वाई का

क्यों घुट घुट के जी रहे हैं हम
क्यों तड़प कर अश्क़ पी रहे हैं हम
क्यों मेरे दर्द की वजह तू है
और फिर दर्द की दवा तू है

क्यों हमें बीमार ए इश्क़ कर दिया तूने
यूँ ही रह लेते हाय इश्क़ ना करते
मर जी जाते इस जमाने की अदाओं पर
हाय तेरी अदाओं पर हम ना मरते

लगता है तुम मेरे दर्द में खुश हो साहिब
रोज़ मुझे ऐसे ही दर्द दिया करो
अगर यही रीत ए मोहबत है तेरी
तो इसी तरह मोहबत किया करो

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