तुम्हें पुकारा है दिल से मैंने
तुम्हें पुकारा है दिल से मैंने क्यों नहीं सुनते मेरी सदाएं
कभी ऐसा भी हो साहिब मुमकिन तुम आओ जब हम बुलाएं
पल पल दिल मेरा तुझे पुकारे पल पल मुझे याद तेरी आए
नहीं तुम आए नहीं पैगाम कोई कैसे कोई दिल को बहलाए
देखो निभाओ तुम इश्क़ अपना और हम अपना इश्क़ निभाएं
तुम्हें पुकारा है दिल से .........
नहीं सुकून किसी दौलत से साहिब मेरी दौलत हो तुम
कोई चाहतें रहें ना बाक़ी साहिब मेरी चाहत हो तुम
दर्द मिले हैं जो इश्क़ में वो दर्द और किसे हम दिखाएँ
तुम्हें पुकारा है दिल से.......
चले भी आओ साहिब मेरे कि अब तुम्हें नहीं वापिस जाना
रख लो आगोश में अब मुझको किया जो वादा है अब निभाना
भुला सकोगे क्या दिल से हमको हम कैसे तुमको भूल जाएँ
तुम्हें पुकारा है दिल से........
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