तू और मैं

अब मैं नहीं मुझमे कोई और जी लेता है

मैं तो लौटती हु जब कोई खता होती है

वरना तू ही जी ले मुझमें अब बाकी क्या है

तेरी दी हुई सांसों से तुझे पी लेती हूँ

कुछ इस तरह तुम मुझ में उतर आते हो

कब मदहोश सी हुई जाती हूँ

अब मेरे पास ही रह जाओ मेरे मोहन

बिन तेरे अब अधूरी सी हुई जाती हूँ

अब तुम और मैं कोई दो ना रहे

जो दूरी है बस नज़र भर का धोखा है

तुम बस गए हो अब रग रग में मेरी

नाम अपना लेते हुए भी मुस्कुराती हूँ अब

यूँ लगे तुम और मैं दोनों एक हुए अब

नाम अपने से कभी तुमको ही बुलाती हूँ मैं

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