एक और शाम

एक और शाम आज फिर से बेकरार है
एक और शाम को फिर तेरा इंतज़ार है

एक और शाम को फिर तेरी याद आई है
एक और शाम में घुली कुछ तन्हाई है

एक और शाम में अरमान मेरे जलते हैं
एक और शाम को दिल फिर से मचलते हैं

एक और शाम को फिर आरज़ू है तेरी
एक और शाम बन बैठी है कातिल मेरी

एक और शाम को तेरे दीदार की हसरत है
एक और शाम वो आज फिर से तेरी चाहत है

एक और शाम को याद अपनी दिला जाओ
एक और शाम प्यासी है मय पिला जाओ

एक और शाम मुझे फिर से तड़पाती है
एक और शाम आग बन कर मुझे जलाती है

एक और शाम में टूट कर बिखर जाऊँ
एक और शाम को तू छू ले तो निखर जाऊँ

एक और शाम का बस कत्ल होना बाक़ी है
एक और शाम को जुस्तजू ए साकी है

एक और शाम मुझे दीवाना कर रही
एक और शाम जग से क्यों बेगाना कर रही

एक और शाम में मुझको सुकून नहीं कोई
एक और शाम को तेरे सिवा जूनून नहीं कोई

एक और शाम को रूह फिर से प्यासी है
इस शाम को मिल जाओ बहुत उदासी है

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