छवि मनमोहन की
छवि देख देख मनमोहन की
मन मेरो नित नित उमंग भरे
कैसो सिंगार किये मोहना
मनमोहनी छवि मेरो चित हरे
भूली सखी मैं सुधि अपनी
दृग कजरारे मादकता भरे
अंग अंग से तेरो रस बरसे
तेरो रूप की महिमा कैसे करें
जिस पर तुम कृपा करो मोहन
वही तेरो छवि के दरस करे
Comments
Post a Comment