क्यों आहटें
क्यों आहटें सी सुनती हूँ
क्यों ख्वाब से तेरे बुनती हूँ
क्यों महक सी हवाओं में
क्यों नाज़ है अदाओं में
क्यों बिन पंख के उड़ रही
क्यों तुझसे जुड़ती ही जुड़ रही
क्यों तू बन चला मेरा नसीब है
क्यों दूर होकर भी करीब है
क्यों उतरते हो लफ़्ज़ों में तुम
क्यों बह जाते अश्कों में तुम
क्यों खामोश सी हुई जाती हूँ
क्यों बेखुदी में तुमको पाती हूँ
क्या तुम्हें जीने लगी हूँ मैं
क्यों जाम ऐसे पीने लगी हूँ मैं
क्यों मदहोश कर देते हो मुझे
अक्सर खामोश कर देते हो मुझे
क्यों खुद से ही जवाब चाहती हूँ
क्यों तुमको बेहिसाब चाहती हूँ
क्यों मेरे दिल का सुकून खो गया
क्यों अब तेरा जूनून हो गया
क्यों दिल को तेरा एहसास हो चला
क्यों दूर होते भी तू पास हो चला
आ जाओ कुछ बात सुन जाओ कभी
कितना खुद को बहलाऊँ मैं
वो भी आकर तुम सुन जाओ
लफ़्ज़ों में नहीं जो कह पाऊँ मैं
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