मैं गुनाहगार हूँ

जब कहीँ दिल पर जख्म खाया है
जुबाँ पे बस तेरा ही नाम आया है

जिसको इश्क़ किया उसने ही दर्द दिया
मोहबत में क्यों ऐसा दौर आया है

जितने भी दर्द दे सब हैं कबूल मुझे
तू भी तो मेरा ही है कहां पराया है

गम और दर्द की बस्ती का बाशिंदा हूँ
दर्द तेरा नस नस में अब समाया है

तेरे इस दर्द को ही अब जीना है मुझे
क्यों जो इस दर्द से तेरा एहसास पाया है

ये दर्द ये तड़प यही इनाम उल्फ़त के
हाय कैसे बेदर्द से दिल लगाया है

जितने भी दर्द दे सब अज़ीज़ हो चले अब
कैसे तुझे भूल जाऊं तुझसे दिल लगाया है

दिल की तड़प अब जान मेरी ले जाए
अब तक कोई ना पैगाम तेरा आया है

लफ़्ज़ों में उतरा है कुछ दर्द तो सम्भले थोड़ा
कबसे इस आग में खुद को ही जलाया है

मैंने ही वादा कोई निभाया नहीं
वरना उस दिलदार ने हर वादा निभाया है

हाँ मैं ही गुनाहगार हूँ तेरी साहिब
मुझको अभी इश्क़ करना ही कहाँ आया है

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