अभी बरस रही ऑंखें मेरी
नहीं बुलाऊंगी मैं प्यारे मर्ज़ी हो फिर तुम आना
अभी बरस रही आँखें मेरी प्रेम सुधा तुम बरसाना
कोई अधिकार नहीं यदि मेरा तो प्रेम किया क्यों
प्रेम में तेरे प्यारे मैंने इतना दर्द जिया क्यों
क्या तुमको भी प्रेम नही है एक बार तो कह जाना
अभी बरस रही ..........
नहीं जानती रीत प्रेम की तुम ही मुझे बताओ
जन्मों से थी तुमको भूली अब मुझे राह दिखाओ
प्रेम में कैसे करूँ समर्पण सब तुम मुझको बतलाना
अभी बरस रही........
मैं मूर्ख पतित अभिमानी प्रेम पथ पर कैसे आऊँ
नहीं जानती कोई विधि कैसे प्रेम निभाऊँ
सब तुमको है सौंप दिया अब तुम ही प्रीत निभा जाना
अभी बरस रहीं...........
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