लिखने बैठी
लिखने बैठी
तो सोचती हूँ
क्या लिखूं
ज्यादा शब्द भी नहीं
पास मेरे
कोई जुबान भी नहीं
ढंग से जानती
जिसमे लिखूं
कोई बड़ी बड़ी स्तुति नहीं करनी आती
या कोई मन्त्र
जिसमे तुम बन्ध सको
फिर सोचा
तुम कैसे बन्ध पाओगे
असीम हो तुम तो
प्यार बांध सकता है
सिर्फ और सिर्फ
पर
मुझे तो वो भी नही आता करना
कोई गुण कोई हुनर भी नहीं
हाय !
तुम्हीं मुझे सिखाओ
कैसे तुम रीझते हो
वैसे ही करूँ ना
क्योंकि मुझे
सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी ही चाहिए
क्योंकि
तुम मेरे हो
और
मैं तुम्हारी कान्हा
सिर्फ तुम्हारी
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