क्यों इश्क़ तेरा

क्यों तेरा इश्क़ सज़ा देता है
लौटना जो चाहूँ तो बुला लेता है

मुझको उम्मीद नहीं तेरे आने की
सोचती हूँ घड़ी भर को लौट चलूँ
आओगे तुम जरूर आओगे कभी
क्यों आस दिल में जगा देता है
क्यों तेरा इश्क़.......

मुझको अब कबूल सज़ाएं सभी
दिल को भा रही तेरी अदाएं सभी
छोड़ कर जाना ना यार कभी
हाल ए दिल तुमको सदा देता है
क्यों तेरा इश्क़....

अब तो रूह भी तेरी हो ही चुकी
ले लो इम्तेहान जो बाक़ी तेरे
मुझको जाना नहीं ख़ाली कभी
देखूं तू कितने इम्तिहान लेता है
क्यों इश्क़ तेरा........

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