मेरी हसरतें
रोके नहीं रूकती हसरतें साहिब
क्यों ये बिखरना चाहती हैं
चाहो तो लूट ले जाओ सब
अब ये कुछ संवरना चाहतीं हैं
तेरे इश्क़ ने दिए पंख इनको
ये पहले कुछ गुमसुम थीं
अब बहकना आदत हो गयी
और बहकना चाहतीं हैं
तुम्हीं संभालो इनको साहिब
मेरे बस की बात नहीं अब
अब ये तेरी बांहों में ही
टूट बिखरना चाहतीं हैं
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