कब खत्म

कब खत्म होंगे सिलसिले ये तन्हाई के
दिन बताओ कैसे बीतें तेरी ही रुसवाई के

कितना दर्द सहेगा ये दिल टूट रहा है अब आओ
तनहा कटती नहीं ज़िन्दगी ऐसे और ना तड़पाओ
मुमकिन नहीं तुम बिन जी पाना दिन ये कटें जुदाई के
कब खत्म......

क्यों हर पल दिल तुमको चाहे क्यों रहता है बेकरार
क्यों मुझको पल चैन नहीं है पल पल तेरा ही इंतज़ार
बेखुद सा दिल है हुआ हाल बने हैं शौदाई के
कब खत्म.......

जख्मों को मेरे देखो तो तुमको भी एहसास रहे
रहते दूर कहीं तुम बोलो कब मेरे  पास रहे
हाय मेरा जीना है मुश्किल दर्द बड़े तन्हाई के
कब खत्म.........

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