अपने प्रेम की ज्योति
शरण में रखना अधम पतित को जैसा भी हूँ तेरा ही
अपने प्रेम की ज्योति जला दो मन में मेरे अँधेरा ही
मद मस्त हुआ नाथ मैं अवगुण मेरे बिसारो जी
कृपा भरी दृष्टि रखना तुम नाथ मैं दास तिहारो जी
कभी तो काली रात हटेगी होगा नया सवेरा ही
अपने प्रेम की ज्योति.........
निर्धन को शरण में ही रखना मेरा कोई और नहीं
तुम ना रखो अपनी शरण तो नाथ मेरी कोई ठौर नहीं
सेवा में ही रहूँ नाथ ये दास है सेवक तेरा ही
अपने प्रेम की ज्योति.......
पाप संताप जलाए मुझको तुमको प्रभु ना याद किया
विषय वासना मन की तृष्णा में जीवन बर्बाद किया
तेरे नाम को दौलत लूटे मन मेरा चोर लुटेरा ही
अपने प्रेम की ज्योति.........
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