वक़्त गुज़रता
वक़्त गुज़रता जाता है मेरे दिल का दर्द नहीं जाता
क्यों इतने बेदर्द सनम क्यों तुमसे देखा जाता
इक पल भी ना चैन मुझे है हाय क्यों ये इश्क़ किया
दे दी सारी नींदे तुमको बदले में है दर्द लिया
है कितना बेताब ये दिल तुम बिन नहीं रहा जाता
वक़्त गुज़रता.....
सोचा था के साथ वक़्त के दर्द मेरा कुछ कम होगा
तुमको भी एहसास तो होगा कुछ तो दिल भी नम होगा
कैसा दर्द मिला इश्क़ का पल पल है बढ़ता जाता
वक़्त गुज़रता.....
सिलसिले मोहबतों के कुछ अजीब ही होते हैं
आँखों से जो दूर रहें दिल के करीब होते हैं
पर नाज़ुक सा दिल है मेरा तेरे बिन नहीं रह पाता
वक़्त गुज़रता..........
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