जलवा तेरा

क्यों लूटते हो साहिब
क्या बचा है अब मुझमेँ

सबसे कीमती दिल ही मेरा था
वो भी कब का तेरा हो गया है

अब हैं दिल में कुछ हसरतें बाकि
तेरा दीदार हो तो पूरी होंगी

यूँ तो शामिल हो ज़र्रे ज़र्रे में तुम
क्यों आँखों को तलाश तेरी ही

भर गए हो मुझमें कुछ इस कदर
कि अब लौट जाना तेरा मुमकिन नही

क्यों फिर ढूँढने लगती हूँ तुमको
लगे तेरा छिप जाना मुमकिन नहीं

अब पता चला साहिब ये खेल मोहबत वाला
यहां खोना पाना चलता ही रहेगा

यूं तो हो मौज़ूद हर कहीँ तुम ही
खुद में जलवा तेरा मिलता ही रहेगा

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