पल पल सलाम
साहिब बोले लिख और सुना
सोचा क्या लिखूं
मैं क्या लिखी कभी पहले
तुम ही लिखवाये
तुम्हारी कशिश ही लिखवाई
ये दिल तो ठहरा तलाब था
अब नदी हो गया
जो बहती है
कुछ कहती है
लहरें आती जाती हैं
तेरा एहसास करवाती हैं
बह रही है नदी
तुम तक आने को
पहुंचेंगी कभी
सागर में
इंतज़ार है
क्योंकि प्यार है
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