कान्हा आओ अब मेरे नाथ
कान्हा ! आओ अब मेरे नाथ
विनती कर कर हारी दासी
कीजो नाथ सनाथ
कान्हा ! आओ अब मेरे नाथ
जन्मों जन्मों की भटकी हूँ
पथ ना मेरा बिसारो
दीन पतित हूँ तेरी शरण ही
तुम ही नाथ उबारो
विनती कर कर हारी दासी
कीजो नाथ सनाथ
कान्हा ! आओ अब मेरे नाथ
ना कोई पूजा नहीं साधना
कैसे नाथ पुकारूँ
लग्न लगी है नाम तेरे की
नित तेरी राह निहारूं
विनती कर कर हारी दासी
कीजो नाथ सनाथ
कान्हा ! आओ अब मेरे नाथ
शरण पड़ी की रक्षा कीजो
और कोई नहीं मेरा
तेरी शरण पड़ी गिरधारी
हाथ पकड़ लो मेरा
विनती कर कर हारी दासी
कीजो नाथ सनाथ
कान्हा ! आओ अब मेरे नाथ
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