दीनानाथ राखो अपनी शरण

दीनानाथ !
राखो अपनी शरण
मुझ निर्धन के धन तुम्हीं हो
तुम बिन क्या जीवन
दीनानाथ !

देर करो ना विनय नाथ है
चरण पड़ी दासी अनाथ है
राह कोई मुझको न दीखे
राह करो भगवन
दीनानाथ !
राखो अपनी शरण

दीनो पर उपकार हो करते
अधमों का उद्धार हो करते
मेरी भी सुधि राखो हरि जी
बरसें मेरे नयन
दीनानाथ !
राखो अपनी शरण

करुणासिंधु अब करुणा कर दो
हृदय प्रेम भक्ति से भर दो
तुम बिन और पुकारूँ किसको
किसको करूँ वरण
दीनानाथ !
राखो अपनी शरण

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून