दिल का दर्द
इस गली में अब दर्द ही दर्द मिलता है
क्या करोगे साहिब इस गली से लौट चलो
ये दर्द मेरा है मेरे हिस्से में आया
तू खुश रहे तो ये दर्द भी कबूल मुझे
कब से तुझको पुकार देखा है
तूने क्यों एक बार खबर ही ना ली
क्यों ये इश्क़ सिरफिरा सा कर देता है
होश में हूँ तो भी होश की होश नहीं
ये अश्क़ ही अमानत है तेरे इश्क़ की
और दे और दे इश्क़ के इनाम हैं ये
जो पता होता की तुम ऐसे इश्क़ करते हो
तो कभी तुमसे दिल लगाते नहीं
अब तो बेमौत हमको मरना है
और दर्द दो शायद यही दवा बन जाए
इन बहते हुए ज़ज़्बात में तेरा इश्क़ साहिब
अब मेरी रूह से भी बहता है
आँख के अश्क़ तो देखती दुनिया ही
दिल तो ख़ामोशी में ही अपनी कहता है
Comments
Post a Comment