कान्हा रे

कान्हा रे !
बांधी तुमसे मन की डोर
सब कुछ तुमको किया समर्पण
ले जाओ जिस और
कान्हा रे !

प्रीत की डोर तुमसों जोडी
तुमसों जोरी जगत सों तोडी
निर्लज्ज ने मोरी बैयाँ मरोड़ी
गयी यमुना की ओर
कान्हा रे!
बांधी तुमसे .........

देखो कान्हा अब ना सताओ
तुम मुरली की तान सुनाओ
छिपो नहीं अब सामने आओ
मेरी तुम्हीं ठौर
कान्हा रे !
बांधी तुमसे .........

रूठ गए तो कैसे मनाऊँ
तुम रूठो तो चैन ना पाऊँ
गुणहीना किस विधि रिझाऊँ
देखो मेरी और
कान्हा रे !
बांधी तुमसे...........

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