मत आना साहिब

मत आना साहिब
तुम मत आना

पूछते हो क्यों

सुनो

ये दिल कभी भी
जिस चीज़ की ख्वाहिश करता है
चाहता है
तड़पता है
पुकार लगाता है

जब मिल जाए

बस

फिर सब खत्म
कोई चाहत नही रहती
कोई तड़प नही
कोई पुकार नहीं

इसलिए
डरती हूँ
अपने ही दिल से
अपनी ही फितरत से

की तेरे आने के बाद
भूल ना जाऊं
ये चाहत
ये तड़प
ये पुकार
ये अश्क
ये सिसकियां
यूँ ही रहें

ये तेरे इश्क़ का इनाम है

तुझे देखने के बाद
और कुछ ना देखूँ

तुझे चाहने के बाद
और कुछ ना चाहूँ

तुझे मिलने के बाद
हाय
कोई और चाहत न आ जाए

डरती हूँ
अपनी बदलने की फितरत से

इसलिए

मत आना साहिब
कभी मत आना
क्योंकि इसी चाहत में ज़िंदा रहना मुझे
ताकि
इसके बाद की कोई और चाहत ना हो

मत आना साहिब
कभी मत आना

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