क्यों हम इश्क़ की उम्मीद
क्यों हम इश्क़ की उम्मीद लगा लेते हैं
खुद को अपने ही गुनाहों से सज़ा लेते हैँ
देख बिखरा हुआ है दर्द ही दर्द दिल में
फिर क्यों महबूब हम तुमको बुला लेते हैं
तुम ना आओ सुन लो यहां क्या पाओगे
जल रहे हैं हम तुम क्यों करीब आओगे
झूठ ही कहती हूँ तुमसे इश्क़ हुआ मुझको
यूँ ही चन्द लफ़्ज़ों में हम अश्क़ बहा लेते हैं
क्यों हमने .....
जो होता दर्द कोई तो जान क्यों बाक़ी रहती
सच तो ये है मुझे तुमसे इश्क़ हुआ न कभी
तेरे इश्क़ को देख खुद से शर्मसार हूँ मैं
तेरी इनायतें देख हम आँख झुका लेते हैँ
क्यों हमने ......
सच तो ये है हम काबिल ए इश्क़ नहीं
पर तू भी जाने कैसा अज़ब इश्क़ करता है
देख कर हैराँ हूँ हर और इश्क़ ही तेरा
फिर भी हम ज़ुबान से तेरा नाम न लेते हैं
क्यों हमने ......
हाय तुम कैसा इश्क़ करते हो हमसे
और मेरी रग रग में भरी बस बेवफाई ही
अब कैसे नज़रें मिलाऊँ तुमसे महबूब मेरे
तेरी राहों में चलो खुद को मिटा देते हैँ
क्यों हम इश्क़ की उम्मीद लगा लेते हैं
खुद को अपने ही गुनाहों से सज़ा लेते हैँ
देख बिखरा हुआ है दर्द ही दर्द दिल में
फिर क्यों महबूब हम तुमको बुला लेते हैं
Comments
Post a Comment