हरि जी दीजौ मोहे हरिनाम

हरि जी दीजौ मोहे हरिनाम
नाम विहीन जिव्हा चान्डालिनी गावै ना श्यामाश्याम

सब शास्त्रण को सार याहि आवै
मुख ते श्यामाश्याम ही गावै
श्यामाश्याम रटूं रैन दिन स्वास् स्वास् होय नाम
हरि जी .......

जगत पदार्थ मोह छुड़ा दीजौ
नाम अपने की नेह लगा दीजौ
नाम खज़ाना भरि भरि राखूं दिवा बासर अविराम
हरि जी .......

मोह माया को छूटे फासी
हरि नाम होय परम् अविनासी
नाम ना बिसरे इक क्षणहुँ को तज जाऊँ ये प्राण
हरि जी दीजौ मोहे हरिनाम
नाम विहीन जिव्हा चण्डालिनी गावै ना श्यामाश्याम

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