प्रेम पिपासु
हम जो होते प्रेम पिपासु मन में उठती प्रेम तृषा ।
जन्म गवाया भजनहीन ही स्वास् स्वास् कीन्हीं विरथा ।।
मुख ते श्यामाश्याम नाम धरया ना जप जप होऊं सेवाहीन ।
भेस बनायो भगत को झूठो मन से होय ना कबहुँ दीन ।।
तुमसों क्या पर्दा मेरे साहिब तुम जानो मेरे मन की ।
एक भरोसा तुमहरा ही माधव सुधि लीजो निर्धन की ।।
अश्रुओं से तेरो चरण पखारूँ और ना होवै मोसे नाथ ।
तेरा सब तुझको ही अर्पण पकर राखियो मेरो हाथ ।।
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