क्या तुम सुनते हो

क्या तुम सुनते हो खामोशियाँ मेरी
लफ़्ज़ों में कहने की मेरी औक़ात न रही

दर्द और बढ़ने दो तो मज़ा हो इश्क़ का
मुस्कुराहटों में मज़ा ए इश्क़ अब नहीं
क्या तुम सुनते हो .....

तेरे कदमों के नीचे खुद को बिछा देती मैं
तेरे आने की मुझे खबर ही ना लगी
क्या तुम सुनते हो .....

ये बेखुदी भी तेरे इश्क़ का इनाम है
मैं तुझको याद करूँ ये मुमकिन कभी नहीं
क्या तुम सुनते हो .......

मर जाएँ तेरे इश्क़ में कबूल है हमें
जाने क्यों रुकी है ये जान जाती ही नहीं
क्या तुम सुनते हो .......

सरफिरे से हो गए हैं पर इश्क़ न हुआ
कभी तुमसे इश्क़ होता ये तमन्ना ही रही
क्या तुम सुनते हो .....

धोखे फरेब मैंने क्या क्या नहीं किया
उनको तो सब पता तुमको कोई ख़बर ही नहीं
क्या तुम सुनते हो .......

जाने क्या समझता है ये ज़माना अब मुझे
मुझको तो कुछ कहने की तहजीब न रही
क्या तुम सुनते हो ......

ना सहलाओ जख़्म मेरे दर्द और बढ़ने दो
ज़िन्दा हूँ उनके बिन मैं क्यों दर्द ये नहीं
क्या तुम सुनते हो ......

कभी उनको सुकून होता नाचीज़ से कभी
ए मौला मेरी तकदीर में इतना भी तो नहीं
क्या तुम सुनते हो ......

लफ़्ज़ों से यूँ खेलना जाना है मैंने बस
मुझको कभी ख़ुदा की इबादत आई नहीं
क्या तुम सुनते हो .....

मेरा वजूद ना रहे बस दर्द ही रहे
इस इश्क़ के समन्दर में उठते तूफां कई
क्या तुम सुनते हो ....

क़ाफ़िर हूँ इस आँख से एक अश्क़ ना गिरा
ग़र मुझको इश्क़ होता क्या डूबती नहीं
क्या तुम सुनते हो....

ग़र मुझको इश्क़ होता पहलू में यार होता
कभी इश्क़ कर सकूँ मैं फितरत हुई नहीं
क्या तुम सुनते हो....

लफ़्ज़ों से खेलना ही औक़ात है मेरी
काश कभी डूब जाती ये क़िसमत ही न हुई
क्या तुम सुनते हो .....

ये कौन उछलता है अंगड़ाइयां लेता है
मुझमेँ कोई छिपा है क्यों मुझमें मैं नहीं
क्या तुम सुनते हो ......

मुझपर यक़ीन करना ज़रा सोच समझ लेना
मुझको कभी खुद पर यकीन हुआ नहीं
क्या तुम सुनते हो ......

होश वालों की दुनिया में तमाशा ही ये होगा
वो क्या समझ सके जिसे इश्क़ हुआ नहीं
क्या तुम सुनते हो ....

बेहोश से रहना है बा होश नहीं करना
बेखुदी में जो मज़ा है वो होश में नहीं
क्या तुम सुनते हो ......

पहले ही हम भले थे खुद से जुदा   नहीं थे
क्या मर्ज़ लग गया है किसी काम के नहीं
क्या तुम सुनते हो ....,

दुनिया से क्या कहें हम क्या रोग लग गया है
ऐसा मर्ज़ लगा है जिसकी दवा नहीं
क्या तुम सुनते हो ....

उठते हैं गिरते हैं ये कैसा अजब नशा है
कुछ होश रहे बाक़ी ये उम्मीद अब नहीं
क्या तुम सुनते हो .....

खुश हैँ तेरे बगैर हम हमें इश्क़ ना हुआ
जो इश्क़ होता तो इक साँस आती कभी नहीं
क्या तुम सुनते हो खामोशियाँ मेरी
लफ़्ज़ों में कहने की मेरी औक़ात न रही

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