मुझको हसीं लगने लगे
मुझको हसीन लगने लगे ये मीठे दर्द इश्क़ वाले
वो ही स्वाद चखे जो अपने को घायल ही कर डाले
जीने की कोई आस न रखना मिटकर ही यार मिले
हो गुलाब से इश्क़ ग़र तो काँटों का भी सार मिले
नहीं आसाँ सच दिल का लगाना कैसी उड़ती है प्यास
जितनी पी लो उतनी बढ़ती मयखाना ही तेरे पास
जब से इश्क़ का मर्ज़ लगा है दुनिया मेरी बदल गयी
तुमसे नज़र मेरी मिली क्या हर हसरत ही मचल गयी
दर्दों का भी शौक हो गया ग़र हर रोज़ इजाफ़ा हो
इश्क़ किया है सौदा नहीं कोई देखा नहीं मुनाफ़ा हो
ख़ुद को पल पल है जलाना आरज़ू यही रोशनाई हो
तुमको सदा मुबारक महफिलें मेरे हिस्से में तन्हाई हो
ग़र दर्द हो तुझको कोई मैं पी जाऊँ हर बूँद ही
तू है तो मेरी हस्ती है तेरे बिना कोई वजूद नहीं
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