ग़र तुझे सुकून हो मेरे अश्कों से
ग़र तुझे सुकून हो मेरे अश्क़ों से कभी
तो खुद को अश्कों के समंदर में डूबा दूँ
तेरे सुकून की ख़ातिर दे दूँ मैं जान भी
ग़र तुझको न सुकून हो तो खुद को मैं सज़ा दूँ
ग़र तुझको सुकून ......
तूने इतना जो दिया है औक़ात नहीं मेरी
मैं तेरी मोहबतों का कैसे कोई सिला दूँ
ग़र तुझको सुकून ......
जो तेरे दिल की चाहत बने वो ही मेरी आदत
महबूब तेरे सदके मैं खुद को भी मिटा दूँ
ग़र तुझको सुकून ......
मेरी रगों में रहे बहता सा इश्क़ तेरा
इस लहू की नहीं तमन्ना जो कहे तो सब बहा दूँ
ग़र तुझको सुकून हो मेरे अश्कों से कभी
तो खुद को अश्कों के समंदर में डूबा दूँ
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