सदा रहें अतृप्त
रहें सदा अतृप्त मदन नैन ज्यूँ तृषित रस चकोर ।
रूपामृत को पान करन सों निरखे नैनन कोर ।।
ज्यूँ ज्यूँ मदन नैनन ते पीवै माधुरी ओर तृषित भयो जावै।
प्यारी को रूप लावण्य अनुपम नैनन कोर नाँहि आवै ।।
ब्रज वीथिन में रसवर्षण होय नवल रंग रंगें नवल किशोर ।
ज्यूँ ज्यूँ चाह बढ्यो प्रियतम को प्यारी दीन्हीं मधुर रस और ।।
स्वसुख नाँहि परस्पर सुख लालसा युगल करें नित्य रस विस्तार ।
वृन्दावन मधुर रस चाखे जा पर युगल कृपा होय अपार ।।
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