मोहना प्रेम किये क्या पाई

मोहना !प्रेम किये क्या पाई ।
आस लगाई एकहुँ तुम्हरी ही सबसों हुई पराई।
मोहना !प्रेम किये क्या पाई ।

मग जोवत बीत चली रे उमरिया
अबहुँ ना सुधि ले मेरो साँवरिया
व्याकुल भई बिरहन अति तेरी नैनन नीर बहाई।
मोहना !प्रेम किये क्या पाई ।

प्रेम की अटपटी रीत ना जानी
तुमको मोहना प्रियतम मानी
हाथ पकर मोहे रखियो साँवरे काहे दीन्हीं बिसराई
मोहना !प्रेम किये क्या पाई ।

हिय की पीर जरि ना जावै
बिरहन किस विधि धीर धरावै
प्राण सखे मेरे गिरधारी तोसे ही आस लगाई
मोहना !प्रेम किये क्या पाई ।

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