क्या करते हो तुम
क्या करते हो तुम
कभी ढूँढा तुम्हें जगह जगह
पाया कोई पता नहीं
कितना बोला निष्ठुर हो तुम
प्रीत लगा कर चले गए
हाय तड़पाना ही आदत तुम्हारी
कभी तुम ऐसे मिले
ऐसे मिले
कि रहे
तुम ही तुम
हर और तुम्हारी ही छाया
अब क्या करूँ
किसे खोजूँ
हर और मिला
तुम्हारा ही स्पर्श
हर और दृश्य हुई
तुम्हारी ही प्रीत
घुल गयी मैं
तुम्हारी इस प्रीत में
कभी ये जगत पीड़ा देता था
तुमने क्या किया
सब लगने लगा
तुम्हारा ही रूप
तुम्हारी ही लीला
तुम्हारी ही प्रीत
तुम ही तुम
और
तुम्हारा प्रेम
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