ना हूँ गुलाब
ना हूँ गुलाब कोई कांटा हूँ तेरे दामन का
मेरे महबूब दामन से छुड़ा दे मुझको
खताओं पर खतायें ही है आदत मेरी
चल अब कोई तो सज़ा सुना दे मुझको
ना हूँ गुलाब.......
तेरे इश्क़ को सरे राह ही बदनाम किया
अब तू राह ए दोजख ही दिखा दे मुझको
ना हूँ गुलाब .......
हूँ मैं कांटा कभी तुझको न दर्द दे सकूँ
चल अब कदमों से अपने ही हटा दे मुझको
ना हूँ गुलाब ......
बेवफा हूँ ना मेरी रगों में इश्क़ कोई
आज तू भी मुझसा कोई दगा दे मुझको
ना हूँ गुलाब ......
भर दे दामन मेरा तू जहाँ के सब दर्दों से
या अपने दिल में छिपी बात सुना दे मुझको
ना हूँ गुलाब कोई कांटा हूँ तेरे दामन का
मेरे महबूब दामन से छुड़ा दे मुझको
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