बहती है जो पल पल

बहती हैँ जो पल पल उन बरसातों का क्या करें
कटती नहीं हैँ बिन तेरे उन रातों का क्या करें

अब तेरे ख़याल से रूह को तस्सली नहीं मिलती
तूफ़ान बन कर उठते इन जज्बातों का क्या करें
बहती हैँ जो पल पल......

भुलाये नहीं भूलती पल पल रहती हैँ जहन में
तेरे संग बिताई उन मुलाकातों का क्या करें
बहती हैँ जो पल पल .......

मुझसी बेताब मेरी अब ये कलम हो चुकी है
जिनमें तेरे इश्क़ की श्याही उन दवातों का क्या करें
बहती है जो पल पल .......

खुद को आईने में अब पहचानते नहीं हम
सिखाया था जहाँ इश्क़ उन जमातों का क्या करें
बहती हैँ जो पल पल उन बरसातों का क्या करें
कटती नहीं जो बिन तेरे उन रातों का क्या करें

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