मैं कीट विषयन को

मैं कीट विषयन को भारी विषयन में भरमाय रहूँ
मैं विषधर विषपान करूँ नित नाम न मुख से गाय रहूँ
मैं कूकर विष्ठा का जीव हूँ झूठो ही मन भरमाय रहूँ
हूँ बुद्धिहीन कपटी कामी जगत सों नेह लगाय रहूँ
न भजन न तप न प्रेम हुआ सदा माया में मन लाय रहूँ
कैसे कहूँ आन निकालो मुझे मोहन मैं पापों से शरमाय रहूँ

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