देखहि प्रीतम

देखहि प्रीतम मुस्काय रही श्यामा ।
नैनन कोर सों निरख निरख पिय ,अद्भुत रस बरसाय रही श्यामा।
मनमोहिनी छवि पिय की निरखी ,नैनन नाँहि समाय रही श्यामा।
पुलकित देह हिय मधुर रस, बाँवरी बन हर्षाय रही श्यामा।
बलिहारी सखी पिय अपने पर ,नवल रस पान कराय रही श्यामा ।
ऐसो सुख नित बरसे युगल पर, सखियन सों नेह लुटाय रही श्यामा।

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