कोई पूछता है

कोई पूछता है तुम इतना दर्द कहाँ से लाते हो
मैंने कहा, कहती हूँ मैं दर्द सारे और तुम छिपाते हो

बह जाते हैं अश्क़ अक्सर खुद पर इख्तयार न रहे
पर ये न करना कभी ये दिल तेरा तलबगार न रहे
इन आँखों को पल पल का बरसता सावन देना
तुमने कभी जो किये वादे वो सब निभाते हो
कोई पूछता है .......

दर्द और गम की इस बस्ती का मैं बाशिंदा हूँ
तुमसे नहीं इश्क़ कभी हुआ तभी तो ज़िन्दा हूँ
दर्द अश्क़ और तन्हाई ही बन गए अब साथी मेरे
जिनसे मेरी ज़िन्दगी का पल पल  तुम सजाते हो
कोई पूछता है ......

हमको तो दर्द भी इश्क़ के अब हसीन लगते हैँ
तेरे हर वादे पर साहिब हम यक़ीन रखते हैं
माना कि इश्क़ नहीं थोडा कभी फ़ितरत में मेरी
पर अपना किया हुआ वादा तुम हमेशा ही निभाते हो
कोई पूछता है तुम इतना दर्द कहाँ से लाते हो
मैंने कहा,कहती हूँ मैं दर्द सारे और तुम छिपाते हो

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