मर्ज़ ए इश्क़
मर्ज़ ए इश्क़ का है ऐसा कोई दवा ना लगे
फ़नाह मुझको है होना अब कोई दुआ ना लगे
मुझको डूबना है अब इश्क़ के समन्दर में
ये मुझे क़बूल है प्यारे कोई सज़ा ना लगे
मर्ज़ ए इश्क़ है ऐसा .......
तेरी उल्फ़त के भरोसे है तभी जान नहीं जाती
मैं बेवफा हूँ सनम चाहे तू बेवफा ना लगे
मर्ज़ ए इश्क़ है ऐसा ......
कभी मेरे दिल को भी ऐसी कुछ तस्सली दे
हर पल एहसास हो तेरा तू जुदा ना लगे
मर्ज़ ए इश्क़ है ऐसा......
हमने इस इश्क़ में कहाँ देखा कोई उसूलों को
दिल की बात दिल से कोई कायदा ना लगे
मर्ज़ ए इश्क़ है ऐसा.....
तू नज़र आता रहे मुझको कायनात सारी में
तेरे बिना इस ज़िन्दगी का कोई फ़ायदा ना लगे
मर्ज़ ए इश्क़ है ऐसा.......
काश ये दिल क़बूल करे हर ख़्वाहिश को तेरी
टूट जाए कमबख्त दिल जो तेरी रज़ा में रज़ा न लगे
मर्ज़ ए इश्क़ है ऐसा कोई दवा न लगे
फ़नाह मुझको है होना अब कोई दुआ ना लगे
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