जग के विषय विकार

जग के विषय विकार न छूटे कैसे प्रेम युगल संग होवे
चित रहे जगत में उलझा मुख पे श्यामा श्याम न सोहवे

हरि नाम बिन जिव्हा चंडालिनी कैसो मुख अपने में धरिये
छोड़ रे मन मूर्ख जगत की चिंता चिंतन श्यामा श्याम को करिये

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