आज मैं शशि से लजा गयी

आज मैं शशि से लजा गई
विशाल आकाश में अर्ध रात्रि
जो दर्श हुए शशि चन्द्र के
महकती से चांदनी के स्पर्श में
हाय आज मैं ऐसे नहा गई
आज मैं शशि से लजा गई

गहरे से रंगक आकाश था वो
बादलों में छिपे हुए शशि चन्द्र
कि मुझसे कई शरारतें उसने
बस जो मेरा हृदय लुभा गई
आज मैं शशि से लजा गई

सोचा मैं भी छिपकर देखूं तुमको
सतरंगी सी चुनर के घूंघट से
ओढ़ी चुनर तो पाया स्पर्श तेरा
मैं चुनर ही मुख से हटा गई
आज मैं शशि से लजा गई

तुम ही छिपे हो ना पिया शशि बन
नहीं मुझको आई इससे लाज कभी
आज देखा तो दिल में शहनाई बजी
तार दिल के जो मेरे हिला गई
आज मैं शशि से लजा गई

ना देखो पिया मैं लजाने लगी हूँ
फिर घूंघट में मुख छिपाने लगी हूँ
तुम छू रहे हो मुझको आह्लादित हो
हाय स्पंदन से तेरे मैं घबरा गई
आज मैं शशि से लजा गई
हाय आज मैं पिया से लजा गई

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