कोऊ पूछिहे बिरहन को बात

कोऊ पूछिहे बिरहन को बात
लै गयो मोहन मेरो हिय बलात्

जबसों मोहन लियौ नेह लगाय
हिय मेरो क्षण क्षण अकुलात्
कोऊ पूछिहे बिरहन को बात

कहाँ होय मोहन पीताम्बर वारो
कण कण में रमे ऐहौ ज्ञान न भात
कोऊ पूछिहे बिरहन को बात

जाके अधरन मुरलिया नित सोहे
वाहि छब देख मेरो हिय हर्षात्
कोऊ पूछिहे बिरहन को बात

ब्रजराज कुँवर मोहन नन्दनन्दन
ब्रज गोपियन को हिय चुरात
कोऊ पूछिहे बिरहन को बात

मेरो हिय जुरि गयौ मुरलीधर सों
काहे रह्यौ सखी मोहे भरमात्
कोऊ पूछिहे बिरहन को बात

कौन दिवस पिया आन मिले मोहे
याहि आस देह मेरो प्राण धरात
कोऊ पूछिहे बिरहन को बात
लै गयो मोहन मेरो हिय बलात्

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