विरहावली
ऐसो नैन क्या धरे देह माँहि ना कटिहे जग को फन्द ।।
चहुँ ओर पियु नाँहि निरखे भलो रहे चाहे अन्ध ।। 1।।
बलिहारी वा नैनन की या माँहि पिया रहे समाये ।।
नैनन कोर ते पिया ही दिखे ओर कछु नाँहि भये ।। 2 ।।
काहे स्वास् लीन्हें पियू बिन जावे ना हिय की पीर ।।
जेहि विधि राखो प्राणनाथ मोहे रहूँ मैं धर धीर ।। 3।।
मैं क्या जानू सखी बाँवरी मैं रही पिया पिया पुकार ।।
कबहुँ आवे पिया घर मेरो बैठी रहूँ बाट बुहार ।। 4।।
कोऊ नाँहि जाने सखी मोहे पिया बिन मैं अभाग ।।
कौन घड़ी पिया आवें मेरो कौन घड़ी जागें भाग ।।5।।
मैं अधमन सिरमौर हूँ नाथा तुम्हीं कीन्हों सम्भार ।।
सौंप दीन्हीं अबहुँ तेरो हाथन जीवन की पतवार ।। 6।।
या विधना लेख लिखे कैसो जाने क्या मेरो भाग ।।
बिन पिया मेरो जीवन सुनो कैसो मेरो सुहाग ।। 7 ।।
ऐसो हाय लिखिहो लेख मेरो पिया बिनहुँ जरि जरि जाऊँ ।।
रैन दिना देखिहो बाट तेरो पिया क्षण क्षण मैं अकुलाऊँ ।।8 ।।
पिया मिले कैसो सखी या घट प्रेम ना होय ।।
कैसो रीझै साँवरो या घट पाषाण सम होय।। 9 ।।
रहूँ बाँवरी अपने पिया की पिया करें मोहे नेह ।।
पिया बिनहुँ प्राण ना राखूं पाथर मेरो देह ।। 10 ।।
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