घुंघरू 1

हमारो धन राधा श्री राधा श्री राधा जीवन धन राधा श्री राधा श्री राधा

प्रेम सरोवर  छाड़ के   तू  भटके  है..... क्यों  चित्त  की चाह  न  मै....!!

जहाँ   गेंदा  गुलाब  अनेक  खिले ...बैठो क्यों करील  की छावं न मै ..!

प्रेमी कहे... यह प्रेम को पंथ ....रहिगोकर  सुधे........ सुधाय न मै ....!!

मन   तोहे  मिले  विश्राम वही ....वृषभान किशोरी  पायन मै ...!!

सत्य ही तो है । कहीं ये मन संसार के विषय विकारों में रस लेता है। पर यह विषय वासना का रस फीका ही तो है नहीं तो मन इसे पाकर भी तृप्त तो हो नहीं रहा। शायद आत्मा को तृप्ति नहीं हो रही। आत्मा की ठौर कहीं और ही है जहाँ ये मन आत्मा उतरना चाहते हैँ और वहीं रहना चाहते हैं। भीतर से आत्मा अतृप्त है व्याकुल है रसहीन है तो जगत का रस फीका लगने लगता है। युगलवर स्वयम् कृपा कर जीव के दुष्ट मन को अपनी और आकर्षित करते हैं। मन कई बार युगल चरणों से जुड़ता है आत्मा को शांति प्राप्त होने लगती है पर संसार के विषय रस की जड़ता जन्मों से भीतर है। पुनः पुनः मन विषयों की और खिंचता है। भीतर से आत्मा का पुनः रुदन आरम्भ हो जाता है। मन और आत्मा के बीच मलयुद्ध आरम्भ होता है पीड़ित होकर आत्मा परमात्मा को पुकार उठती है। हे नाथ ! कबसे आपके चरणों से पृथक हूँ आपकी हूँ मुझ पर कृपा करो नाथ । मेरे इस पातकी मन को जगत के विषय जन्म जन्मांतर की जड़ता खींच रही है। परमात्मा तो सदैव जीव पर कृपालु रहे हैं उन्हें जीव के उद्धार का लोभ ही रहा है। उनका परम् स्वरूप् प्रेम ही तो है और वो पीड़ित व्याकुल आत्मा को अपने ही प्रेम से तृप्त करना चाहते हैँ। जीव उनका निज अंश है तो किस भाँति उसको प्रेम विहीन रख पाएँगें। उसके मन आत्मा में उतपन्न हुई व्याकुलता भी ईश्वरीय कृपा है।

     ईश्वर की कृपा से ही जीव ईश्वर की और उन्मुख होता है। उनका नाम मुख से लेना जीव का सामर्थ्य कहाँ। जगत के विषय रस को फीका जानना केवल ईश्वरीय कृपा से ही तो सम्भव है अन्यथा मन इतना दुष्ट है जीवात्मा को पुनः पुनः युगल चरणारविन्द से दूर कर देता है। ईश्वर की स्मृति होने पर ही मन मुखी जीव ईश्वर की और मुड़ता है। संतों रसिकों भक्तों की कृपा से ही धीरे धीरे मन ईश्वर चरणों का अनुराग प्राप्त करता है। फिर पीड़ा आरम्भ हुई हाय ! मुझे क्यों युगल चरणों से प्रीत नहीं हो पा रही। मुझ अधम का कहाँ बल हे प्रभु मुझे अपना प्रेम दो। ये आत्मा उन्हीं का अंश तो वहीं इसका विश्राम है। क्यों मेरे युगल के चरणारविन्द का आश्रय नहीं मिल रहा। हाय !किशोरी  हाय ! श्यामसुन्दर मेरे युगलवर क्यों आपसे दूर हूँ। क्यों मुझे आपसे प्रेम नहीं हो रहा। मुझपर कृपा करो मुझे अपने चरणों की भक्ति प्रदान करो। हाय किशोरी मुझे निज चरणों की चेरी करो। मुझे दासी बनाकर रख लो स्वामिनी। मेरे युगल के बिना मेरे श्यामाश्याम के बिना मेरा कोई और नहीं है। मुझे श्री चरणों का अनुराग क्यों नहीं हो रहा। क्यों मेरा मन पुनः संसार में लौटता है। श्यामा किशोरी मुझ अधम को रख लो। आप करुणामयी हो आपने कभी पात्र कुपात्र का विचार नहीं किया । आपका नाम ही मेरा धन बन जाए

मेरा धन तुम श्यामा किशोरी मुझे लाडली तेरी ठौर
छोड़ जगत जंजाल राधिके निरखुँ तेरी ओर

जप ना तप ना मेरो कोई बल ना कौन विधि तुम्हें रिझाऊँ
मन में यही अभिलाष किशोरी दासी तेरी हो जाऊँ
हर क्षण जिव्हा गाये नाम तेरो साँझ ढले या होवै भोर
मेरा धन तुम श्यामा किशोरी मुझे लाडली तेरी ठौर
छोड़ जगत जंजाल राधिके निरखुँ तेरी ओर

अपने चरणों की प्रीति दो मोहे भव बन्धन सों छुड़ाओ
तुम्हें रिझाऊँ किशोरी श्यामा मोहे अपनी शरण बैठाओ
सजल नयन मेरे तुम्हें पुकारूँ श्यामा तुम कृपा की कोर
मेरा धन तुम श्यामा किशोरी मुझे लाडली तेरी ठौर
छोड़ जगत जंजाल राधिके निरखुँ तेरी ओर

तुम बिन कैसा जीवन मेरा क्षण क्षण ताप जलावे
यही आस स्वामिनी तुम सों कब कृपा मोपे बरसावे
हिय मन्दिर माँहिं आन विराजो संग नटवर नन्द किशोर
मेरा धन तुम श्यामा किशोरी मुझे लाडली तेरी ठौर
छोड़ जगत जंजाल राधिके निरखुँ तेरी ओर

मन में व्याकुलता उतपन्न हुई। पुनः पुनः मन श्री चरणों से प्रार्थना करता है। हाय किशोरी अब मुझे अपने चरणों का आश्रय प्रदान करो स्वामिनी जू। मुझ अधम को और दूर नहीं रखो।

मुझ निर्बल को बल तुमहीं किशोरी कितहुँ मेरी ठौर !
विनय करूँ करि जोरि स्वामिनी निरखो मेरी ओर !!
तेरी शरण जी पड़ी किशोरी जैसो चाहो मोहे रखना !
कोय देव मनाऊँ क्यों लाडली मोहे तेरो नाम ही जपना !!
जन्म जन्म तोहे भूल्यो श्यामा अबहुँ द्वार पड़ी मैं तेरो !
अपनी कीजौ मोहे कुंवरी श्यामा भव बन्धन होय घनेरो !!
मोहे भरोसो तेरो लाडली गाऊँ मैं राधा नाम !
तेरो चरणन ही ठौर किशोरी यहीं मिले बिसराम !!

पुनः पुनः व्याकुल आत्मा युगल चरणों से जुड़ना चाहती है। धीरे धीरे युगल कृपा से ही संसार के रस कुछ फीके लगने लगते। भीतर का रुदन तीव्र होने लगता है। हाय किशोरी अब अपने चरणों से ओर दूर नहीं रखो। मुझे रख लो किशोरी जू हाय ! श्यामा कृपा करो। आपको छोड़ और कहाँ जाऊँ आपके नाम बिन मुझे और कहीं विश्राम नहीं मिलेगा। मेरे मन की व्याकुलता मेरी पीड़ा हरो किशोरी जू अब आपकी शरण में हूँ । आपको छोड़ अब कहाँ जाऊँ मैं।

हा हा किशोरी मोहे दूर राख्यो चरण ते !
विमुख मेरो हिय रह्यौ सदैव भजन ते !!

मलिन हूँ कुटिल विषय भोगी तुम काहे विचार करो !
हाथ पकड़ स्वामिनी अबहुँ मेरो उद्धार करो !!

पात्र कुपात्र श्यामा तुम कबहुँ विचारे हो !
हाय !अकुलावुं श्यामा काहे ना निहारे हो !!

मुझ पातकी का कौन लाडली अबहुँ तिहारे बिन !
श्रम ना कटे श्यामा तड़पूं ज्यूँ मीन जल बिन !!

ऐसो ना बिसारो श्यामा तुम अधमन पर कृपा करो !
विषयन ताप में जलत हूँ स्वामिनी कृपा करो !!

क्रमशः

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