कौन सुने इस दिल के

कौन सुने इस दिल के दर्द भरे अफ़साने
रातों को जाग जाग कर रोएँ तेरे दीवाने

तुम भी कभी जलो तो बनकर शमा से
रोज़ रोज़ मरते हैं कितने ही परवाने
कौन सुने.......

मत तोड़ो इस दिल को नाज़ुक सा दिल मेरा है
अपना भी कहाँ रह दे दिए तुमको नज़राने
कौन सुने..........

कभी तुम भी कोई पढ़ना रोज़ लिखते हैँ तेरे लिए
जाने सच भी लगें तुम्हें मेरे लिखे ये अफ़साने
कौन सुने........

दर्द सा रहता है दिल में टीस सी उठती है
जिस पर बीते लम्हें ये वही हाल ए दिल मेरा जाने
कौन सुने........

हम कहाँ लिखते थे साहिब ये इनायतें तेरे इश्क़ की
अक्सर ही भरे रहते हैँ अब अश्कों के पैमाने
कौन सुने इस दिल के दर्द भरे अफ़साने
रातों को जाग जाग कर रोएँ तेरे दीवाने

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