घुंघरू 10
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हाय किशोरी जू ! आपके चरणों में रह कर भी मुझसे आपकी सेवा नहीं हो रही। आपको कोई सुख नहीं हो रहा। नुपुर में लगा एक घुँघरू अति व्याकुल हो उठा है। किशोरी जू आप ही इस दीन हीन की व्यथा को समझिए। इतनी व्याकुलता क्यों हो रही है। मुझे श्री चरणों से अभी नेह नहीं हुआ। स्वामिनी जू मुझ अधम पर कृपा कीजिये। घुंघरू व्याकुल हो और स्वामिनी जू के कोमल हृदय तक भाव नहीं पहुंचें ये भी असम्भव ही हुआ। श्री किशोरी जू की भाव दशा परिवर्तित होने लगती है।
श्री किशोरी जू अपने वस्त्रों को ऐसे छूने लगती हैँ जैसे पहली बार देख रही हों। अपना नीलाम्बर उन्हें अत्यंत प्रिय हो उठा है। पुनः पुनः अपना आँचल संवारने लगती हैँ। कुछ समय पश्चात अपने सारे आभूषणों को निहारने लगती हैँ। धीरे धीरे सभी आभूषण उतारने लगती हैँ और उन्हें अपने आँचल में एकत्र करने लगती हैं। एक एक आभूषण को छूने लगती हैँ जैसे पहली बार देख रही हों। उनकी स्थिति विचित्र सी है जैसे उन्हें स्वयम् राधा होने का आभास प्रथम बार हुआ है। अभी तक वो स्वयम् को राधा भी नहीं मान रही थी। हाय ! ये नीलम्बर मेरे नीलमणि को अत्यंत प्रिय है । मेरी इस चुनर को प्रियतम कितनी बार छुए हैँ। पुनः पुनः अपने वस्त्रों का स्पर्श करती है। सभी आभूषण तो ऐसे प्रतीत हो रहे हैँ जैसे प्रथम बार देखे हों। सभी आभूषणों को प्रियतम के करों का स्पर्श प्राप्त है।
श्री प्रिया जू ने सभी आभूषण चुनर में लपेट लिए हैँ। चुनर में लिपटे सभी आभूषण आहा ! उनको प्रिया जू आज ऐसे लाड कर रही हैँ। यूँ तो शुक सारी सबको प्रिया जू लाड करती हैँ उनको अपने करों से पवाती हैँ आज आभूषणों को भी लाड कर रही पुनः पुनः निहार रही हैँ।
कंगन भी खन खन छोड़ कृष्ण कृष्ण करते हैँ। चूड़ियाँ भी कृष्ण कृष्ण ही प्रिया जू को सुनाती हैँ। नुपुर को तो प्रिया जू ने हाथ में उठा लिया है। इसके घुंघरू मणि माणिक मोती सबको स्पर्श कर रही हैँ। सब घुंघरू तो कृष्ण कृष्ण कहते हैँ और एक बांवरा सा व्याकुल सा घुंघरू राधा राधा कहता है। श्री जू हर घुंघरू को स्पर्श करती है इस घुंघरू से ध्वनि आती है राधा साथ में ही सारे घुंघरू कहते हैँ कृष्ण। नुपुर के अलग अलग घुंघरू राधा कृष्ण राधा कृष्ण ......पुकारते हैँ। श्री जू अति प्रसन्न हों राधा कृष्ण राधा कृष्ण कहने लगती हैँ।
प्रिया जू आज अपने वस्त्रों और आभूषणों से अत्यंत प्रेम लाड कर रही हैँ क्योंकि इन्हें प्रियतम के करों का स्पर्श प्राप्त है। श्री प्रिया जू के हर वस्त्र आभूषण में कृष्ण ही तो समाये हुए हैँ। इस प्रकार श्री जू अपनी भाव तरंगों में डूबी रहती हैँ। घुंघरू जो बहुत देर से व्याकुल था आज अपनी स्वामिनी जू का स्नेह पाकर आनन्दित है। कोई दयामयी किशोरी को सच्चे मन से पुकारे और लाडली उसे अपना स्नेहिल स्पर्श नहीं दें ये सम्भव ही नहीं। बहुत देर तक स्वामिनी जू राधे कृष्ण राधे कृष्ण कहकर भाव विभोर होती रहती हैँ।
अपनी सखियों को पुकारती हैँ और कहती हैँ मुझे श्याम रंग की चुनर ओढ़ा दो। श्याम ही मेरे रोम रोम में बसे हुए हैं । उनका नाम ही मेरा धन है।
श्याम रंग की चुनर दीजो मोहे ओढ़ाए
सखी !
कबहुँ श्याम पिया घर आए
श्याम रंग की.....
श्याम तन श्याम मन श्याम ही हमारो धन
श्याम की मुरतिया मन में समाये
सखी !
कबहुँ श्याम पिया घर आए
श्याम रंग की......
श्याम आन श्याम मान श्याम ही हमारो प्राण
पल भर भी बिछड़त चैन नहीं पाये
सखी !
कबहुँ श्याम पिया घर आए
श्याम रंग की.......
श्याम गति श्याम मति श्याम मेरो प्राण पति
बिन श्याम मेरो मन अकुलाये
सखी !
कबहुँ श्याम पिया घर आए
श्याम रंग की.......
श्याम पिया श्याम जिया मन श्याम श्याम गाए
श्याम श्याम रटत ही बांवरा होय जाए
सखी !
कबहुँ श्याम पिया घर आए
श्याम रंग की ......
इस प्रकार श्री जू प्रियतम की मधुर स्मृति में आनन्दित है।
क्रमशः
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