भज रे मना भज रे मना

भज रे मना भज रे मना हरि सों प्रीति कर रे मना
धर रे मना धर रे मना हरि चरणन मन धर रे मना

भटक रहा तू नित विषयन माँहि जगत ने तोहे भरमाया
मोह मद मत्सर के वश भटके हरि सों नेह न लगाया
मन में कल्मष रह्यो तेरो भारी फिरे भक्तन को वेश बना
भज रे मना भज रे मना हरि सों प्रीति कर रे मना
धर रे मना धर रे मना हरि चरणन मन धर रे मना

मानव जन्म का मोल ना पायो विरथा देह गवाई
मुख से कभी हरिनाम ना गाया विषयन संग प्रीत निभाई
हरि नाम बिन फिरे तू कंगले हरि का नाम ही परम् धना
भज रे मना भज रे मना हरि सों प्रीति कर रे मना
धर रे मना धर रे मना हरि चरणन मन धर रे मना

बीत गया जीवन अमोलक तेरा कभी हरि नाम न गाया
माया संग फिरे मदमाता हरपल मन में जगत बैठाया
हरि हरि रट ले मूढ़ मति अब जीवन शेष जो सफल बना
भज रे मना भज रे मना हरि सों प्रीति कर रे मना
धर रे मना धर रे मना हरि चरणन मन धर रे मना

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