जगत माँहि

जगत माँहि साधु हृदय उदार
काटे कल्मष सकल जगत के प्रेम देवे युगल चरणार
जगत माँहि ........

मनवा साधु चरण रज लयिहै
साधु शरण माँहि हृदय रमिहै
हरिनाम का आश्रय लीजो होय भवसागर पार
जगत माँहि .........

साधु संगत हिय प्रेम उपजावै
हरि करे कृपा आप ही मिलावै
सँत चरण नेह जबहुँ गाढे होय प्रीति बेल प्रसार
जगत माँहि.........

साध की वाणी कीजै नाँहि शंका
साधु हृदय पावन ज्योँ गंगा
भक्ति भक्त भगवन्त गुरु एकिहो मानो चार
जगत माँहि साधु हृदय उदार
काटे कल्मष सकल जगत के प्रेम देवे युगल चरणार
जगत माँहि ..........

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