घुंघरू 9

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         श्यामा आज मानवती हो गयी हैं। कभी तो उन्मादिनी हो कान्हा को अपने चारों और अनुभव करती हैं और कभी कान्हा के आलिंगन में भी विरह अनुभव करती हैं। कान्हा जाने कब से मिले ही नहीं उनसे तो आज मान कर बैठी हैं । कान्हा से बात भी नहीं करूंगी। सखी से कहती है श्यामसुन्दर आएं तो लौटा ही देना । मैं तो योग्य नहीं हूँ उनके प्रेम के। मुझे तो उनसे प्रेम ही नहीं हुआ। जाने क्या क्या तरंगें श्यामाजू के मन में उठ रही हैं।

    कान्हा के ना मिलने से मान भी हो रहा है और साथ ही साथ स्वयम् की अयोग्यता भी दृष्टिगोचर हो रही है। उनके प्रेम की ये विचित्र दशा है जहाँ बहुत सारी भाव तरंगें चढ़ती उतरती रहती हैं।

    श्यामा जू अपने सारे आभूषण उतार देती हैं । उनकी दृष्टि अपनी नुपुर पर पड़ती है जो श्यामसुन्दर को बहुत प्रिय हैं। श्यामाजू नुपुर को उतार देती हैं । नहीं नहीं मैं नहीं पहनूगी ये नुपुर। इसके घुंघरू तो सदा कृष्ण कृष्ण करते रहते हैं। प्यारी जू को घुंघरुओं की छन छन भी कृष्ण कृष्ण सुनती रहती है। अपनी नुपुर उतार कर रख देती हैं और रोने लगती हैं। जब श्यामा जू नुपुर को अपने चरणों से उतार देती हैँ तो नुपुर की पीड़ा की तो कोई सीमा ही नहीं है। हाय ! आज किशोरी जू हमसे भी रूठ गयी हैँ। सब घुँघरू अभी कृष्ण कृष्ण नहीं अपितु राधे राधे राधे .....नाम लेकर रुदन करने लगते हैँ। अपनी स्वामिनी जू से एक क्षण भी अलग होना नुपुर और घुंघरुओं के लिए मृत्यु तुल्य पीड़ा हो उठती है। हा किशोरी ! हा राधे ! हमारा क्या अपराध हुआ जो किशोरी जू ने नुपुर सहित हमारा त्याग कर दिया है।

   इसी प्रकार ये दशा कितने समय तक रहती है। रोती हुई कभी अंदर कभी बाहर व्याकुलता में घूमती रहती है। सखियाँ श्री प्रिया जू की इस दशा को देख पीड़ा का अनुभव करती हैं। जब प्रियाजु इतनी व्याकुल हों तो सखियाँ किस प्रकार आनंद कर सकती हैं। प्रियाजु की प्रसन्नता ही तो सखियों के हृदय के प्राण हैँ।

   कुछ देर पश्चात कान्हा लौट आते हैं और बहुत विनती करते हुए प्रेम से लाडली जू को मना लेते हैं। लाडली जू भी अधिक समय तक उनसे दूर किस भांति रह सकती हैँ। उनका ये मान धारण करना भी तो प्रेम ही है। कान्हा जू प्यारी जू के चरण दबाने लगते हैँ और उनके चरणों में कान्हा जू की दी हुई नुपुर ही नहीं है। प्यारी जू आप इतनी मानवती हो गयीं आपने हमारी प्रिय नुपुर भी उतार दी। अब मैं पुनः आपका श्रृंगार अपने हाथों से करूँगा। कान्हा एक एक कर  आभूषण प्यारी जू को पहनाने लगते हैं परन्तु उनको नुपुर कहीं नहीं मिलती। प्यारी जू की नुपुर खो गयी है। ये नुपुर तो श्यामसुन्दर को अति प्रिय है। अब प्यारी जू अति व्याकुल हो उठती हैँ। उन्हें किसी भी प्रकार से स्मरण नहीं हो रहा की उन्होंने नुपुर कहाँ रख दी। सभी आभूषण तो मिल चुके हैं परन्तु नुपुर तो मिली ही नहीं।

  श्यामसुन्दर प्रिया जू और सखियाँ सब नुपुर ढूँढने लगते हैं। ढूँढ़ते ढूंढते कान्हा के हाथ में एक छोटी सी डिब्बी आती है। उस डिब्बी को हाथ में उठाते हैँ और उसमे से कृष्ण कृष्ण की ध्वनि आती है। कान्हा उस डिब्बी को खोलते हैं और उसमें से प्रियाजु की नुपुर मिलती है। आहा !! कितना अद्भुत प्रेम है प्यारी जू का प्रत्येक आभूषण भी कृष्ण कृष्ण हो चुका है। कान्हा उस नुपुर को उठा कर पुनः प्यारी जू के चरणों में पहना देते हैं। नुपुर श्री जू के वियोग में अत्यधिक व्याकुल थी पर उसे और घुंघरुओं को पूर्ण विश्वास था कि स्वामिनी जू अधिक देर तक दूर नहीं रख पाएंगीं । प्रियतम की दी हुई प्रत्येक वस्तु उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय जो है। जैसे ही प्रिया जू नुपुर धारण करती हैँ कान्हा के स्पर्श से उनका रोम रोम उन्मादित होने लगता है। यही उन्माद नुपुर और सभी घुंघरुओं में उतरने लगता है। सभी युगल प्रेम में ही डूबने लगते हैँ।

   क्रमशः
 

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