मेरे सद्गुरु देव जी

मेरे सद्गुरु देव जी नित तुम्हरी शरण गहूँ ।
चरण बिठाये लीजो नाथ मोहे स्यामास्याम कहूँ ।।

मुझ कपटी मलिन पातकी के काटो जग के बन्ध ।
कल्मष भरा मलिन हृदय मेरो विषयन की छूटे फन्द ।।

हाथ रख्यो मेरे शीश नाथ मेरो तेरो भरोसो मोय ।
स्यामास्याम सेवा में राख्यो दासी की विनती होय ।।

सद्गुरु देव ठौर आपकी और कितहुँ मैं जाऊँ ।
तुम्हरी कृपा सों तुम्हरे बल सों युगल सेवा पाऊँ ।।

मेरो बल ना होय नाथ कोऊ तुम ही बल मेरे देवा ।
तुम्हरी शरण में हूँ सनाथ मैं आप ही दीजो सेवा ।।

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