तुम छिपते हो साहिब
तुम छिपते हो साहिब
ये भी तो अदा है तुम्हारी
पर्दे में रहने की
कभी कभी पल पल तरसाना
और कभी यूँ आ जाना
कि हर और तुम ही तुम
कभी हर चेहरा अपना सा नज़र आता है
और क्या क्या बनोगे तुम
सच तुम ही तो हो
तुम्हारे सिवा हो भी कौन सकता
सब रूप तुम्हारे ही
देखो मुझे ठगो मत
पहचानती हूँ मैं तुम्हें
हर मुस्कुराहट में
हर खुशबू में
हर अश्क़ में
हर हँसी में
हर तरंग में
और
कहाँ कहाँ बताऊँ
तुम्हें कहाँ कहाँ देखा मैंने
हाँ
तुम ही तो हो
या तो कह दो
तुम नहीं थे
या कह दो मुझे
बाँवरी
हाँ
तुम्हारी बाँवरी
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